पार्टनर
मेरी आज की कहानी पूरी पढ़ने से पहले ही आप कोई कमेंट मत कीजिएगा। मत कहिएगा मुझे सुप्रभात। आप एक दूसरे से भी सुप्रभात मत कहिएगा। मत लगाइएगा होड़ कि पहला कमेंट किसका है। आज आप पहले पूरी कहानी पढ़िएगा। उसे ठीक से समझिएगा। अपने दिल में झांकिएगा, फिर इस कहानी को अपनी वॉल पर साझा कीजिएगा। खुद से वादा कीजिएगा कि आप इस कहानी को अपने बच्चों को भी सुनाएंगे। उनसे कहिएगा कि रिश्तों की कहानी सुनाने वाले संजय सिन्हा ने आज की कहानी उनके लिए ही लिखी है। फिर शुरू कीजिएगा एक-दूसरे को सुप्रभात कहना गुड मॉर्निंग कहना। फिर आप वो सब कीजिएगा, जो आप रोज़ करते हैं। लेकिन अपने दिल में झांकिएगा ज़रूर, क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी आज की कहानी के बहुत से पात्र हमारी-आपकी ज़िंदगी में भी समाहित हो सकते हैं।
मेरे पास चीन के सबसे बड़े शहर शंघाई से एक रिपोर्ट आई कि वहां फर्नीचर रिटेल आईकिया के एक कैफे ने शिकायत की है कि वहां बहुत से बुज़ुर्ग आकर घंटों बैठे रहते हैं। एक कप चाय या कॉफी का आर्डर करके वो चुपचाप अकेले बैठे रहते हैं और कभी-कभी तो यूं ही पूरा दिन काट देते हैं। अब रेस्त्रां में किसी को बैठने से रोका नहीं जा सकता, पर कैफे ने अपनी शिकायत में कहा है कि शहर के ढेरों बुज़ुर्ग वहां इस इंतज़ार में आते हैं कि शायद उन्हें कोई पार्टनर मिल जाए। शायद उन्हें कोई ऐसा मिल जाए, जिसके साथ वो अपना अकेलेपन साझा कर सकें। होटल वाले की शिकायत है कि इस तरह अकेले बुज़ुर्गों के आकर बैठ जाने से वहां नौजवान जोड़ियां अाने से करताने लगी हैं और होटल के बिजनेस पर इसका असर पड़ रहा है।
ये ऐसी रिपोर्ट नहीं थी कि इसे टीवी पर मैं हेडलाइन बना देता, लेकिन इस छोटी सी रिपोर्ट को पढ़ कर मेरी आंखों के आगे बहुत सी कहानियां घूमने लगीं।
मेरी आंखों के आगे मेरे पिता घूमने लगे।
मां की मृत्यु के बाद मैं अपने पिता के साथ था। लेकिन जब मैं आगे की पढ़ाई के लिए पटना से भोपाल चला गया तो स्टेशन पर मुझे छोड़ने आए पिता की आंखों में मैंने आंसू के दो कतरे देखे थे। मैंने उनसे पूछा था कि क्या आपको अकेलापन लगेगा? पिताजी ने कहा था, “अरे नहीं, यहां सब ठीक से चलेगा, तुम आराम से अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना। मेरा क्या है, मैं तो जी चुका हूं, तुम्हें अभी बहुत कुछ करना है।”
तब मैं बच्चा था। इतना तो समझ में आ रहा था कि पिताजी को मेरा जाना थोड़ा आहत कर रहा है, पर पूरी तरह कुछ समझ नहीं पा रहा था।
मैं पटना से भोपाल चला गया, मामा के पास।
साल भर बाद पिताजी मुझसे मिलने के लिए भोपाल आए। मैंने बहुत गौर से देखा था कि पिताजी के बाल उस एक साल में पूरी तरह सफेद हो चुके थे। उनकी आंखों के नीचे काले घेरे बन गए थे। और मैंने पहली बार ही महसूस किया था कि मां की चर्चा छिड़ते ही उनकी आंखें छलछला आती थीं।
मुझे पहली बार अहसास हुआ था कि पिताजी को अब अकेलापन सालता है।
मैंने तब तो कुछ नहीं कहा था, लेकिन जैसे ही मेरी नौकरी लगी, मैंने पिताजी से अनुरोध किया कि अब आप अपनी नौकरी छोड़ कर दिल्ली मेरे पास चले आइए। पिताजी ने कहा कि जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब आऊंगा। अभी तो तुम्हें सेटल होना है।
नौकरी के साल भर बाद ही मेरी शादी हो गई और मुझे याद है कि मैंने अपनी पत्नी से कहा था कि मैं पिताजी को साथ लाना चाहता हूं। पिताजी सरकारी अफसर थे और उनके रिटायर होने में अभी वक्त था। पर अपनी शादी के साल भर बाद ही मैंने पिताजी पर दबाव डाला कि आप अब हमारे साथ दिल्ली चलिए। पिताजी ने समय से पहले रिटायरमेंट के लिए आवेदन दिया और वो हमारे साथ पटना से दिल्ली चले आए।
फिर कभी मैंने पिताजी को अकेला नहीं छोड़ा। वो या तो हमारे साथ रहे या फिर तब तक बड़ौदा में सेटल हो चुके मेरे छोटे भाई के साथ।
पिताजी हम दोनों भाइओं, हम दोनों की पत्नियों के साथ दोस्त की तरह घुल-मिल गए थे। वो हमारे साथ वीडियो गेम खेलते, सिनेमा देखते, शॉपिंग करते और खूब खुश रहते। मैंने और मेरी पत्नी ने पिताजी के साथ सिनेमा हॉल में एकदम आगे की लाइन में बैठ कर रंगीला फिल्म देखी थी।
कभी-कभी हम पति-पत्नी को दफ्तर से आने में देर हो जाती तो वो हमारी पसंद का खाना बनाने की कोशिश करते और हमारे घर आने पर हमें सरप्राइज़ देते।
ये तो मेरे पिता की कहानी है। लेकिन मैंने अपने ही पिता के कई दोस्तों को, जिनकी पत्नी उनसे पहले संसार से चली गईं, बुढ़ापे में अपने अकेलेपन के दंश से जूझते हुए देखा है। मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं, जिन्होंने अपने अकेलेपन से तंग आकर आत्महत्या तक कर ली। ऐसा नहीं कि उनके बच्चे नहीं थे, बहू नहीं थी, नाती-पोते नहीं थे। सब थे। पर किसी ने अकेले बुज़ुर्ग के दर्द को महसूस करने की कोशिश ही नहीं की।
मैं जानता हूं कि आज मैं आपको जो कुछ सुना रहा हूं, उसमें कुछ भी नया नहीं है। आप सब इस सत्य को जानते हैं। समझते हैं। पर क्योंकि कहानी की शुरुआत शंधाई के आईकिया कैफे से हुई है, जहां के प्रबंधन ने शिकायत की है ढेरों बुज़ुर्ग किसी एक पार्टनर की तलाश में सारा-सारा दिन कैफे में काट देते हैं, इससे उनके बिजनेस पर असर पड़ रहा है, तो मैं आपको फिर लिए चलता हूं चीन।
चीन में कुछ साल पहले एक बच्चा पैदा करने की पॉलिसी बनी थी। अब वहां बुजुर्गों की आबादी काफी बढ़ गई है। ऐसा माना जा रहा है कि 2050 तक चीन की पूरी आबादी में हर चौथा आदमी 65 साल से अधिक उम्र का होगा। अभी के आंकड़ों पर ध्यान दें तो चीन में 30 फीसदी से अधिक लोग 80 साल से ऊपर के हैं। इनमें से जिनकी पत्नी या पति की मृत्यु हो गई है, वो पूरी तरह तन्हा हो गए हैं। बच्चे अपने घर-संसार में व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में तमाम बुजुर्ग अपने लिए ऐसे जीवन साथी की तलाश करते हैं, जिससे साथ बातचीत करते हुए उनका बाकी का जीवन कट जाए। और इसी इंतज़ार में वो कैफे में आते हैं कि कोई उनकी तरह तन्हा यहां आए तो वो उससे दोस्ती कर लें, रिश्ते बना लें।
ये चीन की रिपोर्ट है।
हमारे यहां के बुज़ुर्ग बुढ़ापे में अपने लिए पार्टनर नहीं तलाशते। वो अपना बुढ़ापा अपने बच्चों के साथ ही काटते हैं। जिनकी कोई संतान नहीं, उनकी कहानी बिल्कुल अलग है, उनका दुख भी अलग है। लेकिन जिनकी संतान हैं, उनमें से भी कइयों की कहानियां बहुत अलग हैं।
सारी कहानियां सामने नहीं आतीं। सभी लोग सत्य को कह नहीं पाते। पर मैं ऐसे तमाम बुज़ुर्गों को जानता हूं, जो अपने बेटे-बहू के घर में रह कर भी तन्हाई में ज़िंदगी गुजार रहे हैं। संजय सिन्हा की कहानी आज आपके लिए नहीं, उनके लिए भी नहीं जो इस दंश को सह रहे हैं। रिश्ते वाले बाबा की कहानी आज उस पीढ़ी के लिए है, जिनके मां-बाप कुछ वर्षों के बाद तन्हा होंगे। मैं अपनी कहानी से उन्हें संदेश देना चाहता हूं कि अपने माता-पिता का ख्याल रखिएगा। ये याद रखिएगा कि वो आपके भविष्य के लिए अपना सबकुछ लुटा देते हैं। उन्हें तन्हा मत छोड़िएगा। उन्हें उनके पार्टनर की कमी मत खलने दीजिएगा। उनका बुढ़ापा किसी रेस्त्रा में एक अनजान आस के साथ गुजरने देने के लिए मत छोड़िएगा।
आपको बनना है अपने पिता और अपनी मां की उम्मीद। उनका पार्टनर। आप बेटा हों या बेटी, अपने बुज़ुर्गों का दोस्त आपको बनना है। चीन और अमेरिका में सोशल सिक्योरिटी सरकार की ओर से दी जाती है। पर भारत जैसे देश में आप ही उनकी सोशल सिक्योरिटी हैं। ध्यान रखिएगा, पैसे से तन्हाई नहीं दूर होती। तन्हाई दूर होती है आदमी के साथ से। ये साथ बनाए रखिएगा। आज आप जो देंगे, वही पाएंगे। हो सकता है आपके माता-पिता ने ये गलती भी की हो कि उन्होंने अपने बुजुर्गों का ध्यान न रखा हो, पर आप इस कुचक्र को तोड़ दीजिएगा। इसके टूट जाने में ही जीवन ‘रंगीला’ है, अन्यथा एक समय के बाद ये शाप बन जाता है।
Sanjay Sinha
#ssfbFamily
1 comment:
ओह्ह कितना कटु सत्य है हम सब जानते है लेकिन इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहे है बुजुर्गो को सिर्फ सिर्फ कुछ वक्त चाहिए होता है उनके पास यादों की तमाम इमरते होती है मेरी मां के अंतिम दिनों में जब उनके पास जाते थे तो मैं उनको उनके बचपन की उन बातो का जिक्र याद दिलाती थी जिसमे वो नानाजी के साथ बाजार जाती थी ,उनकी थाली में खाना खाती थी उसी वक्त उनके चहरे की चमक बढ़ जाती थी
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