Tuesday 20 December, 2016

रिश्तों की चादर


तन्हाई से बढ़ कर आदमी के लिए कोई सज़ा नहीं होती।
मेरे पिता मेरी मां की असमय मृत्यु के बाद अचानक तन्हा हो गए थे और उन्होंने अपनी ये तन्हाई किसी और पार्टनर की तलाश कर नहीं, बल्कि खुद हम बच्चों की मां बन कर दूर की।
ऐसे में जब मैं बड़ा हुआ तो पिता के साथ मेरे रिश्ते और प्रगाढ़ हो गए थे। हम दोनों एक-दूसरे से अपने मन की बातें साझा करने लगे थे। आमतौर पर जो बातें बच्चे मां से साझा कर लेते हैं, मैं पिता से करने लगा था। और पिता के साथ मेरा यह रिश्ता तब तक रहा, जब तक वो जीवित रहे।
मैंने ऐसा सुना था कि शादी के बाद बहुत सी महिलाएं नहीं चाहतीं कि उन्हें सास-ससुर के साथ रहना पड़े। ऐसे में अपनी शादी के तुरंत बाद जब मैंने अपनी पत्नी को अपनी पूरी कहानी सुनाई, तो एक रात वो कहने लगी कि पिताजी को हम लोग पटना से दिल्ली बुला लेते हैं।
पिताजी के रिटायर होने में अभी वक्त था। पर मैंने पिताजी से कहा कि आप समय से पूर्व रिटायरमेंट ले लीजिए और अब हमारे साथ रहने दिल्ली चले आइए।
पिताजी मेरी बात मान गए थे। वो दिल्ली चले आए थे।
बहुत निज़ी बात है, पर आपसे साझा करने में क्या संकोच करना?
एक सुबह पिताजी ने अपने पलंग की चादर को खुद बदल लिया। मेरी पत्नी अपने काम से मुक्त हो कर पिताजी के कमरे में गई और उनके बिस्तर एक ऐसी चादर को देखा, जो तकिया और कमरे से मैच नहीं कर रहा था, तो उसने उस चादर को हटा दिया। वो आलमारी से दूसरी चादर निकाल लाई और उनके पलंग पर बिछा गई।
थोड़ी देर बाद पिताजी कमरे में आए। चादर बदला देख कर उन्होंने मुझसे पूछा कि चादर किसने बदली?
मैं समझ नहीं पाया कि पिताजी चादर बदले जाने को लेकर इतना परेशान क्यों हैं? चादर बदल भी गई तो ऐसी क्या बड़ी बात हो गई? पर पिताजी पहली बार थोड़ा आहत से थे।
मैंने पत्नी को बुलाया और पूछा कि पिताजी के कमरे की चादर क्यों बदली?
पत्नी ने धीरे से कहा कि चादर इस कमरे से मैच नहीं कर रही थी, इसीलिए उसे हटा कर ये वाली चादर बिछा दी।
अब ये ऐसी घटना नहीं थी जिस पर चर्चा हो। लेकिन पता नहीं क्यों पहली बार पिताजी एकदम से खीझ उठे थे। फिर वो अचानक बहुत ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। मेरी तो समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हुआ।
मैंने कभी पिताजी को ऐसे रोते हुए नहीं देखा था। मां के निधन के बाद भी नहीं। वो ख़ामोश भले हो गए थे, लेकिन रोए नहीं थे।
पर आज पिताजी एक चादर को लेकर अपनी बहू पर बरस पड़े थे। फिर वो ज़ोर-ज़ोर से रोने भी लगे थे।
पत्नी तो एकदम घबरा गई थी।
मैंने पिताजी को समझाने की कोशिश की। वो कुछ देर रोते रहे फिर चुप हो गए। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे कुछ देर अकेला छोड़ दो।
मैं और मेरी पत्नी हम दोनों कमरे से निकल आए। पूरे घर में अज़ीब सा माहौल हो गया था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि चादर बदलने की घटना इतनी बड़ी क्यों हो गई?
मैं पत्नी पर थोड़ा नाराज़ भी हुआ।
पत्नी बताया कि वो चादर कमरे से मैच नहीं कर रही थी। इतना कह कर वो खुद रोने लगी। अब पूरा घर ग़मगीन हो गया।
थोड़ी देर में पिताजी अपने कमरे से निकले। वो मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे कहा बेटा, छोड़ो इस बात को। फिर उन्होंने पत्नी को भी समझाने की कोशिश की।
पत्नी कह रही थी कि बाबूजी मुझसे गलती हो गई। मुझे आपकी चादर नहीं बदलनी चाहिए थी। आप नई चादर लाए थे, तो मुझे लगा कि आपको मेरी बिछाई चादर पंसद नहीं आ रही। इसीलिए मैंने सबसे अच्छी चादर आपके बिस्तर पर बिछा दी।
पिताजी कह रहे थे, “नहीं बेटा, मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई कि मैं तुम पर इतना नाराज़ हो गया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।”
बहुत देर तक माहौल बहुत गमगीन सा रहा। अब सवाल था कि पिताजी ने नई चादर चुपचाप खरीदी ही क्यों? उन्हें अचानक नई चादर की ज़रूरत ही क्यों आ पड़ी? वो कभी मुझसे बताए बिना बाज़ार नहीं जाते थे। चादर, तौलिया और इस तरह की चीजें खरीदने तो कभी नहीं।
फिर आज क्या हो गया?
मैंने धीरे से पिताजी से पूछा कि आपने नई चादर खरीदी ही क्यों? पिताजी ने बहुत धीरे से कहा, “आज के दिन ही तुम्हारी मां से मेरी शादी हुई थी। मेरा मन किया कि मैं आज नई चादर बिछा कर सोऊं। इसीलिए मैं नई चादर खरीद लाया था। बस आज की बात थी, कल तो फिर तुम जो चादर चाहते बिछा देते।”
इतना कह कर उन्होंने अपनी आंखों को पोंछा और कमरे में चले गए।
मुझे बहुत सालों के बाद लग रहा था कि पिताजी अपनी पार्टनर के चले जाने के बाद इतने सालों तक किस तन्हाई से गुज़रते रहे। ये सत्य है कि वो हमारे साथ थे, लेकिन जीवन साथी की याद के साथ भी वो पूरी ज़िंदगी लिपटे रहे।
लेकिन आज इतना फिर से कहूंगा कि तन्हाई सचमुच बहुत बुरी होती है। न किसी को तन्हा छोड़िए, न खुद तन्हा रहिए। अपनों को अपने साथ रखिए, खुद को अपनों को साथ रखिए।
हर रिश्ते की चादर की अपनी खुशबू होती है। उसे बनाए रखिए। ठीके वैसे ही, जैसे मेरे पिता अपनी संगिनी के चले जाने के पंद्रह साल बाद भी नई चादर की खुशबू में उन पलों को जीते रहे। साल दर साल।
Sanjay Sinha
#ssfbFamily

2 comments:

Anonymous said...

सही बात

Anonymous said...

मार्मिक प्रसंग