Monday 22 October, 2007

3 MISSED CALLS - रात के आंसू

मेरी पत्नी ने बताया कि सुबह से तीन बार उसके ऑफिस में काम करने वाली लड़की ने फोन किया और हर बार उठाने से पहले काट दिया। मेरी पत्नी ने कहा कि ये मिस्ड कॉल छुट्टी की कॉल है। मैंने उससे पूछा कि मिस्ड कॉल देने का क्या मतलब है? वो घंटी बजा कर फोन बंद करने की जगह पूरी बात कर लेती। बात थी ही ऐसी कि उसके पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था। उसने कहा कि अब ऑफिस जा कर ही पता चलेगा कि आखिर बार-बार मिस्ड कॉल देने का मतलब क्या था?

बात आई गई हो जाती। शायद मुझे याद भी नहीं रहता कि उस दिन सुबह में ऐसा कुछ हुआ है। लेकिन उसी रात मेरे ऑफिस में काम करने वाले एक साथी के फोन की घंटी बजी। आम तौर पर वो फोन पर संक्षिप्त बात करता था लेकिन उस रात उसने लंबी बात की तो मुझे थोड़ा अटपटा सा लगा। फोन पर बात कर वो वापस आया तो मुझे थोड़ा अनमना सा दिखा। कुछ देर तो वो चुपपाच काम करता रहा फिर उसने मुझसे अगले दिन की छुट्टी मांगी। वो आम तौर पर छुट्टी नहीं लेता था, और कभी लेता भी था बहुत पहले से इसकी जानकारी दे देता था। लेकिन रात में साढ़े 12 बजे फोन का आना और फिर आधी रात को ये बताना कि सर कल मैं नहीं आउंगा मुझे हैरत में डाल गया। वो जानता था कि टी वी न्यूज चैनल में अचानक छुट्टी नहीं लेनी चाहिए, बाकी साथियों के लिए समस्या आ जाती है। मैंने सोचा भी कि उससे पूछूं कि बात क्या है लेकिन चुप रह गया, क्योंकि उस रात मैंने उसकी आंखों में आंसू के चंद कतरे देखे थे। यही सोचा कि कोई जरुरी बात होगी वर्ना वो यूं ही छुट्टी ना लेता है और ना लेगा।

अगले दिन सुबह मेरी पत्नी ने बताया कि मिस्ड कॉल देने वाली लड़की ने छु्ट्टी नहीं ली, बल्कि पूरे समय वो ऑफिस रही। लेकिन उसके आगे उसने जो बताया वो बहुत ही हैरान कर देने वाला था। उसने बताया कि मिस्ड कॉल उसने इसलिए दिया था ताकि छुट्टी ना लेनी पड़े।
ये बात कुछ अजीब सी थी। कोई छुट्टी ना लेने के लिए मिस्ड कॉल क्यों देगा? ये मैंने नहीं पूछा, कोई भी यही पूछता। मेरी पत्नी ने बताया कि कल उसके पति का जन्मदिन था। और उसका पति उसे लगातार जोर दे रहा था कि वो छुट्टी ले ले। उस लड़की ने अपने पति से कहा कि ठीक है , मैडम से बात करके छुट्टी ले लेती हूं, और उसने तीन बार फोन किया और तीनों बार मिस्ड कॉल देकर अपना फोन बंद कर लिया। अपने पति से उसने कहा कि मैडम फोन नहीं उठा रही हैं, और बिना बताए अचानक छुट्टी लेना ठीक नहीं, इसलिए ऑफिस जाना ही होगा। पत्नी ने उससे कहा कि ऐसी बात थी तो फोन पर बात कर ही लेती और छुट्टी ले भी लेती। आखिर पति का जन्मदिन था उसके भी तो कुछ अरमान होंगे।

इस पर उस लड़की ने कहा, "मन तो था छुट्टी लेने का। लेकिन जब भी हम छुट्टी लेते हैं और घर मे साथ-साथ होते हैं तो हमारा झगड़ा हो जाता है। बात कुछ भी हो झगड़ा होकर ही रहेगा। मैं नहीं चाहती थी कि उसके जन्मदिन वाले दिन हमारा झगड़ा हो इसलिए उसके कहने पर मैंने छुट्टी के लिए फोन भी किया ताकि उसे भरोसा हो जाए कि मैं छुट्टी चाहती हूं, और मैंने छुट्टी ली भी नहीं।"
इस पूरे मामले पर हमने लंबी चर्चा की। और यहीं मैंने पत्नी को बताया कि मेरे ऑफिस में एक लड़के ने कल आधी रात को अचानक छुट्टी मांगी है। मुझे भी नहीं पता कि आखिर वो किसका फोन था जिसने उसे अंदर तक हिला दिया था। पत्नी ने सलाह दी कि मैं उस लड़के को फोन करके पता करूं कि आखिर माजरा क्या है?

मैंने उसे फोन किया। मेरे साथी ने फोन उठाया। मैंने बातचीत शुरु करते हुए पूछा कि घर में सब खैरियत तो है ना! मेरे इतना कहते ही वो सुबक पड़ा। उसने बताया कि सर, कल रात मेरी पत्नी ने फोन किया और बताया कि उसका चार साल का बेटा अचानक नींद उठ कर रोने लगा और उसने जिद पकड़ ली कि पापा को बुलाओ। मैंने बहुत दिनों से पापा को नहीं देखा है। और इतना कह मेरा साथी फूट-फूट कर रोने लगा।

उसने आगे बताया, "सर, मैं रोज घर से दो बजे निकलता हूं, और रात में घर लौटते हुए रोज एक बज जाता है और तब तक मेरा बेटा सो चुका होता है। सुबह सात बजे वो स्कूल जाता है और दोपहर ढाई बजे तक लौटता है। ऐसे में सिर्फ हफ्ते की एक छुट्टी ही होती है जब मैं उसको मिल सकता हूं, या मिल पाता हूं। लेकिन उस दिन बाकी के इतने काम होते हैं कि उन्हें पूरा करने में पूरी छुट्टी निकल जाती है। ये सच है कि मेरे बेटे ने कई हफ्तों से वाकई मुझे नहीं देखा। इसी बीच उसने टीवी पर कोई फिल्म देखी जिसमें पत्नी को छोड़ कर पति चला गया है- और बेटे के बाल मन में कहीं बैठ गया कि पापा भी सबको छोड़ कर घर से चले गए हैं।"


उसकी बातें सुन कर मैं सन्न रह गया।
मैं सोचने लगा कि हम कहां भाग रहे हैं? किससे भाग रहे हैं? मेरी पत्नी के ऑफिस में काम करने वाली लड़की अपने पति से प्यार नहीं करती ऐसा नहीं है, लेकिन वो उसके साथ अकेले के उन पलों को नहीं गुजारना चाहती जो उसे दंश देते हैं। वो उसके साथ पूरी जिंदगी गुजार सकती है लेकिन छु्ट्टी के 12 घंटे नहीं गुजार सकती। वो उन पलों को नहीं जीना चाहती जो उसे और अकेला कर देंगे। वो जानती है कि दफ्तर से घर आने के बाद खाना बनाना, बिस्तर ठीक करना और फिर टीवी देखते हुए साथ में सो जाना उतना बुरा नहीं होगा जितना की साथ में कई घंटे बिना किसी काम के गुजार देने में होगा।

वहां लड़ाई है अहं की, आजादी की और जिंदगी को भोगने की जद्दोजेहद से जुडे़ सवालों की।


मेरा साथी अपने घर परिवार के बारे में जिम्मेदार है और वो उनके बारे में दिन रात सोचता है। लेकिन वो अपने बेटे को समय नहीं दे पा रहा, प्यार नहीं दे पा रहा।
आखिर क्यों? दोनों भाग रहे हैं। दोनों के पास ना तो रुकने का वक्त है और ना जरुरत है। दोनों की मंजिलें दोनों को नहीं पता। सब भाग रहे हैं, इसलिए वे भी भाग रहे हैं। लेकिन क्या पाना है दोनों नहीं जानते।

क्या हम भी उनकी तरह ही कहीं भाग रहे हैं? भाग रहे हैं तो क्यों ?

मुझे भी नहीं पता। मेरी पत्नी भी क्या किसी छुट्टी वाले दिन यूं ही चाहती होगी कि काश वो ऑफिस चली जाती। क्या मेरे बेटे ने भी कभी ये चाहा होगा कि पापा की उंगली पकड़ कर शाम को पार्क में घूमने जाता। क्या मैंने भी पत्नी की आजादी छीनने की कोशिश की होगी। क्या वो भी मेरे साथ जिंदगी भले गुजार रही है लेकिन छुट्टी नहीं गुजारना चाहती।
बहुत सोचा। जितना सोचा उतना उलझता गया। और यहीं मुझे याद आ रहा है कि पिछले अट्ठारह सालों से मैंने कोई शाम नहीं देखी।

मेरी हर शाम दीवारों के बीच गुजरी हैपता ही नहीं चला कि इन 18 सालों में मेरी जिंदगी की 6 हजार 570 शामें कहां गुम हो गईं।


जब तक जवाब नहीं मिलेगा मिस्ड कॉल की घंटियां मेरे दिल और दिमाग को चीरती रहेंगी।