Friday 14 September, 2012

वो एक सितारा...

ये आर्टिकल मैंने पिछले साल 25 दिसंबर को लिखा था। सोचा था ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा, लेकिन रह गया। समय के साथ बात पुरानी लगने लगी, लेकिन शाहरुख की नई फिल्म 'जब तक है जान'  के पोस्टर को देखा और पुरानी यादें ताजा हो गई। और बस....उस पुराने आर्टिकल को आज पोस्ट कर रहा हूं। .....बहुत सी पुरानी यादों के साथ....
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पिछले हफ्ते शाहरुख खान से मिला। वो हमारे दफ्तर आए थे, हम काफी देर तक साथ बैठे, फिर दफ्तर की कैंटीन में हमने रात एक बजे खाना खाया, गप-शप की और सर्द रात में वो करीब ढाई बजे दिल्ली वाले अपने घर के लिए निकल गए।

शाहरुख खान से हमारी बातचीत का बहुत बड़ा हिस्सा उनकी फिल्म डॉन-2 थी, और फिर डिनर के वक्त उनके पहले टीवी सीरियल फौजी की यादें थीं। हमने पिछले 24 साल की पुरानी यादों को दिल खोल कर ताजा किया, और ये याद करके हम खूब हंसे भी उन दिनों शूटिंग में क्या-क्या मजे करते थे। उन दिनों मैं दिल्ली के अखबार जनसत्ता में नया-नया लगा था, और साथ में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) में कोर्स कर रहा था। मेरी ड्यूटी रात में होती थी, इसलिए दिन में मैं आराम से क्लास अटेंड कर रहा था। बेफिक्र मैं पूरी सैलरी अपने इंस्टीट्यूट की कैंटीन में उड़ा दिया करता था, और दोस्तों के साथ चाय और समोसे के बीच जिंदगी के फलसफे को तलाशा करता था।

उन्हीं दिनों हमारे क्लास की एक लड़की (जो बाद में फौजी के लीड रोल में शाहरुख के साथ थी) ने शाहरुख से मुलाकात कराई और कहा ये भी पत्रकार बनने वाले हैं। सिर्फ बताने के लिए बता रहा हूं कि जिस साल हम आईआईएमसी में पढ़ रहे थे, उसी साल शाहरुख दिल्ली में जामिया इंस्टीट्यूट से जर्नलिज्म का कोर्स कर रहे थे। लेकिन तब भी ऐक्टिंग उनका पहला पैशन था, और इसी सिलसिले में उनकी मुलाकात उस लड़की से हुई थी, जो ड्रामा वगैरह में काफी दिलचस्पी रखती थी।

शाहरुख पहली मुलाकात में ही काफी गर्म जोशी से मिले। फिर मैं कई बार फौजी की शूटिंग में सेट पर गया, और हमने जनसत्ता में शूटिंग की रिपोर्ट भी छापी। मैं पढ़ाई बस शौकिया कर रहा था, क्योंकि बाकी सारे स्टुडेंट को पढ़ाई के बाद ऐसी ही नौकरी की दरकार थी, जो मेरे पास पहले से थी।

तब शाहरुख भी पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन उनके चेहरे पर वही बेफिक्री थी, जो मेरे भीतर थी। मैं पढ़ रहा था क्योंकि मेरे पास वक्त था, और मेरी नौकरी में इस डिग्री से कोई चार चांद नहीं लगने जा रहा था। शाहरुख पढ़ रहे थे, क्योंकि थिएटर करने के बाद उनके पास भी वक्त था, और यकीनन उनकी डिग्री से भी उनकी एक्टिंग के करीयर में चार चांद नहीं लगने वाले थे।

लेकिन तब पत्रकारिता, थिएटर और फिर टीवी सीरियल में लीड रोल तीनों आपस में मिल कर भी जुदा-जुदा थे। शाहरुख टाइम पर शूटिंग करने पहुंचते, दोस्तों को खूब हंसाते, क्लासिक सिगरेट से छल्ले उड़ाते और जितना पैसा जेब में होता उसे फक्कड़ भाव से लुटा कर चले जाते।

फौजी टीवी पर आने लगा था। दिल्ली का लड़का दिल्ली में ही हीरो बन चला था। शाहरुख शूटिंग के दौरान ही पॉपुलर होने लगे और लगने लगा कि ये हीरो टीवी के कई और सीरियल में आएगा। फौजी के बाद सर्कस आया। लेकिन शाहरुख की ये मंजिल नहीं थी।

हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। मैं नौकरी में व्यस्त हो गया, मेरी क्लास वाली लड़की पता नहीं कहां चली गई। शाहरुख मुंबई चले गए।

फिर शाहरुख के बारे में कुछ बताने की जरुरत नहीं। बाकी की कहानी तो खुली किताब है। दीवाना से लेकर डॉन-2 तक का सफर आपको मुझसे ज्यादा पता है।

समय बीतता गया। मैं प्रिंट मीडिया से निकल कर इलेक्ट्रानिक मीडिया में चला गया। फिर कुछ सालों के लिए अमेरिका चला गया और फिर भारत वापस आकर दुबारा इलेक्ट्रानिक मीडिया का हिस्सा बन गया। कई आर्टिकल लिखे, किताब लिखी, पूरी दुनिया घूमा, रिपोर्टिंग की, नेताओं से मिला, अभिनेताओं से मिला लेकिन शाहरुख नाम का वो लड़का जिसे आज मैं आप कह कर संबोधित कर रहा हूं, मेरी जेहन से कभी मिटा नहीं।

पत्रकारिता की वजह से हम कई बार मिले, कई बार फोन पर बातें हुईं।

लेकिन पिछले हफ्ते की मुलाकात कुछ अलग सी थी। हम दोनों के लिए। हमने पुरानी यादों को ताजा किया। शाहरुख ने पूछा वो लड़की कहां है? वो लड़की जो पढ़ाई खत्म होते ही कहीं चली गई थी, जिससे मैं पूरे 23 सालों से नहीं मिला, हालांकि उसने पिछले साल मुझे कहीं सात समंदर पार से फोन किया था। वो फेस बुक पर मुझे मिली थी और मैंने अपना नंबर उसे फेसबुक पर भेजा था।

लेकिन उस दिन जब शाहरुख खान से मुलाकात हुई तो उन्होंने नैपकिन से हाथ साफ करते हुए एकदम उसके बारे में पूछ लिया। जाहिर है पहले टीवी सीरियल की अपने अपोजिट हीरोइन से उनका कोई वास्ता दुबारा नहीं रहा होगा तभी उन्हें उनके बारे में पता नहीं होगा। लेकिन 23 सालों बाद उन्होंने उसके बारे में क्यों पूछा?

शाहरुख खान फौजी से निकल कर मुंबई चले गए थे और फिल्मों में व्यस्त हो चले थे। फौजी की उस हीरोइन को तब चाह कर भी याद करने का वक्त उन्हें नहीं मिला होगा। समय ने उन्हें सितारा बना दिया और फौजी की वो हीरोइन कहीं धुंधलके में खो गई।

वो मेरी दोस्त थी और शाहरुख से उसी ने मुझे मिलवाया  था। हमारी तिकड़ी कुछ समय दिल्ली में मस्ती भी करती रही। पत्रकारिता, पढ़ाई और फौजी शूटिंग के दिन गुजर गए। हम तीनों अपनी अपनी जिंदगी में खो गए।

दफ्तर की कैंटीन में रात के दो बजे हमने उस लड़की को याद किया। मैंने कहा कि वो कहीं विदेश में है। मैंने ये भी बताया कि पिछले साल हमारी बात हुई थी। लेकिन ताजा तरीन नहीं पता।

शाहरुख खामोश रहे, फिर सिगरेट पी। हम नीचे साथ साथ उतरे। प्रियंका चोपड़ा अपनी कार में बैठीं, शाहरुख अपनी अलग कार में। काले रंग की बीएमडब्लू में। रात के कोई ढाई बज चुके होंगे। घना कोहरा था, भयंकर सर्दी थी। शाहरुख से नीचे उतरते हुए मैंने पूछा दिल्ली की सर्दी याद आती है?

शाहरुख ने चहकते हुए कहा था, “बहुत याद आती है।“

मैंने शाहरुख से चलते-चलते ये भी पूछा था इतनी रात में कहा जाएंगे। तब शाहरुख ने कहा था दिल्ली वाले घर में। हम गले मिले और फिर मिलने का वादा कर अलग हो गए।

कोहरा बहुत था, मेरे लिए घर जाना मुश्किल लग रहा था। मैं अपने ड्राइवर से पूछना चाह रहा था कि गाड़ी चलाने में मुश्किल आएगी? मैं उससे कुछ पूछता इसके पहले ही उसने मुझसे पूछा, “साहब शाहरुख खान इतनी रात में अपनी मां से मिलने गए हैं?”

मां से? मैं चौंका। तो ड्राइवर ने साफ किया। उसने कहा कि जब आप प्रियंका मैडम को बाय कह रहे थे तब नीचे उतरते हुए उन्होंने मुझसे पूछा था कि कहीं टॉर्च मिल जाएगी? मुझे अपनी मां से मिलने जाना है।

शाहरुख अपनी मां से बेइंतहा मुहब्बत करते थे, करते हैं। सुना था। उन्होंने मुझसे कहा था घर जाउंगा, लेकिन ये नहीं कहा था कि इतनी रात वो अपनी मां से मिलने उनकी मजार पर जाएंगे।

ये शाहरुख खान हैं, जो 23 साल पुरानी दोस्त को याद करते हैं, जो रात के दो बजे धुंध में अपनी मां की मजार पर अकेले जा कर उनसे गुपचुप बातें करते हैं।

मैंने ड्राइवर से कहा घर चलो। उसने कहा धुंध है, जरा मुश्किल आएगी।

मैं मन ही मन सोच में पड़ गया। इतनी धुंध में शाहरुख खान गए हैं मजार पर। उन्हें न रात का खौफ है न कोहरे का। वो इतने बड़े सितारे हैं कि दिन में चाह कर भी मां से मिलने नही जा सकते। लाखों लोगों की भीड़ उन्हें उन्हीं की मां से नहीं मिलने देगी।

इसलिए दिल्ली आकर वो अक्सर रात में मां से मिलते हैं।

मेरा ड्राइवर कह रहा था, "साहब कोहरे में मुश्किल आएगी" और....शाहरुख इस कोहरे को चीरते हुए मां से मिलने जा रहे थे।

बहुत सोचा, और जो समझा वो यही कि जो यादों को जिंदा रखते हैं, जो यादों की परवाह करते हैं और जो उन यादों से मिलने के लिए धुंध को चीर देते हैं वही सितारा बनते हैं। वर्ना क्या हम सभी सितारा नहीं बन जाते?

4 comments:

Anonymous said...

superb.

Anonymous said...

superb.

Anonymous said...

इतने दिनों बाद लिखा और आखिर में आंसू निकाल ही दिया।

Anonymous said...

Crying....Crying....Crying. Wonderful writing. Shahrukh Kan should read this article. Hats up!

Karan