Friday 13 March, 2009

पीली आंखों वाली लड़की

वो लड़की कभी जी ही नहीं पाई। जब उसे पहली बार प्यार हुआ था तब भी नहीं। और अब जब उसके बेटे की शादी हो गई है तब भी नहीं।

जब उसे प्यार हुआ था तब पूरा घर उसका दुश्मन हो गया था। सबने कहा था ये गुनाह है। फिर भी छिप-छिप कर चंद दिनों तक तक वो अपनी चाहत से मिलती रही लेकिन घर वालों ने जल्दी में उसकी शादी कर दी। फिर किसी को पता ही नहीं चला कि कभी उसकी कोई चाहत भी रही थी।

28 साल पहले बीस साल की उम्र में अपने पति के पीछे पीछे वो उस शहर में चली गई थी जहां उसकी चाहत उसका पीछा नहीं कर सकती थी। मैं तब उससे मिला था। मैंने उसकी चमकती आंखों में झांका था। उसकी आंखों का रंग बदल गया था। मैंने देखा था उसकी आंखों का रंग पीला हो गया था।

फिर मैं उससे कई बार मिला। हर बार मैंने देखा उसकी आंखों का पीला रंग गहराता जा रहा था। उसके मुर्झाते लेकिन मुस्कुराते चेहरे को पढ़ने की कई बार मैंने कोशिश की, लेकिन कभी पढ़ नहीं पाया।
फिर मैंने पीली आंखों वाली लड़की के बारे में सोचना छोड़ दिया। मुझे लगता था कि वो अब इन पीली आंखों के साथ जी लेगी। वो एक अमीर पति की पत्नी बन गई थी और चमकती आंखों वाले दो बच्चों की मां बन गई थी।

उसने रात को रात नहीं समझा, दिन को दिन नहीं माना। उसने खुद के लिए कुछ नहीं किया, जो कुछ किया बस अपने पति, दो देवरों, तीन ननदों और दो बेटों के लिए किया। उसने उनमें से किसी आंखों को कभी पीला नहीं पड़ने दिया। इस क्रम में उसके 28 साल निकल गए।

बहुत सालों बाद एक बार फिर मैं उससे मिलने गया था। मैंने इस बार गौर से देखने की कोशिश की, लेकिन मैं चाह कर भी उससे नजरें नहीं मिला सका। मैं मन ही मन सोच रहा था, क्या ये जी रही है?

मेरे पास सिर्फ सवाल थे, जवाब नहीं थे। पीली आंखों वाली लड़की के पास सवाल और जवाब दोनों नहीं। बाकियों के लिए तो ये सवाल ही बेतुका था।

उसकी आंखों का पीलापन बढ़ता गया, और चेहरे की मुर्झाहट भी बढ़ती गई।

एकदिन वो बिस्तर पर गिर गई। तब घर के लोगों को लगा कि कुछ गड़बड़ है। डॉक्टर ने तुरंत उसका इलाज शुरु कर दिया।

कई दिनों से उसकी पीली आंखों का इलाज करने वाले डॉक्टर अब भी उसका इलाज कर रहे हैं। कहते हैं वो बच जाएगी। लेकिन कैसे ? बचने के लिए उसे शरीर का जो अंग चाहिए वो उसे कौन देगा ? वो भी नहीं देंगे जिनकी आंखों को पीला पड़ने से वो बचाती रही है पूरे 28 साल तक।

फिर भी मैं चाहता हूं कि वो थोड़ा और जी ले.. एक बार अपने लिए जी ले..बिना पीली आंखों के जी ले....ये जानते हुए भी कि तो वो कभी जी पाई और आगे जी पाएगी।

मैं ऐसा क्यों चाहता हूं?

...क्योंकि उसने जाने कितनी बार मुझे गले से लगाया है दोस्त बन कर , और सीने से लगाया है मां बन कर।

6 comments:

सुशील छौक्कर said...

क्या कहूँ संजय जी नि:शब्द सा हो गया हूँ। बस एक शब्द निकल रहा है मार्मिक लिखा है आपने।

Anonymous said...

maine aapka yeh blog padha,aur jis tarah aapne shabdo ki motiya piroi hai wo dil ko chu lene wali hai.har ek shabd kuch kehta hua mehsoos hota hai.wo shabd jo hum kabhi sun nahi pate ya phir sunna nahi chahte..per aisa kyu hai?aaj pili aankh wali ladki bhi yehi soch rahi hogi ki kya usne sirf aanho ka rang khoya hai ya aur bhi kuch?aaj uski pili aankho mai kai sawal uthe honge?kya koi uski pili aankho ko padh paye ga?

swapnil raj said...

sansar me jab koi aata hai to uski aankhon me safed rang hote hai per jeise jeise zindgi aage badhti hai jivan k sapne k sath aankhon k rang bhi badalte hai....per in sabke bich sach sirf eitna hai ki..jivan safed rang ki tarah hota hai jisme ham apne chahat k rang bhar lete hai...kabhi pila kabhi laal kabhi nila...jeise chahat weisa hi rang.."zindgi jinki berangat hue zati hai .., dhundhte hai wo rango ko aise kapro me..., or batore le zate hai hazaron rang khushiyon k ..., jinse zindagi rangeen nazar aati hai..."zindgi me jab aate hai tab uska rang safed eislia hota hai taki yahan aakar usper or kei rang dikh sake ...kuch rang khushiyon k hote hai or kuch dukho k ...

Anonymous said...

aisa kyon likhte hain ki teen din bus hum rote hi rahe. parh kar to yahi laga ki aapne mere kahaini likhi hai. main beemar hoon, meri aankhe peeli ho gai hain..maine pura jeewan pati aur bachchon ke liye gujara..beta usa me hai..pati busy hai...main akeli hoon...main hi hoon wo peeli aankhon wali larki...main kya meri jaisi subhi larkiyon ki yahi kahani hai...

ek larki.

vandana gupta said...

bahut hi gahri vyatha likh di aapne to............shayad har nari ki kamobesh yahi kahani hai..........jinke liye jeete hain wo hi kabhi apne nhi ho pate.........apne liye jeena itna aasan nhi hota na shayad isiliye sabke liye jeene ki aadat pad jati hai.aur koi samajh hi nhi pata.
bahut hi shandar prastuti.

Tulika Verma said...

Blogosphere par ek sahaj hindi blog dekhkar achcha laga...
maarmik vivaran...