Wednesday 21 May, 2008

क्योंकि मैं शर्मिंदा हूं- ARUSHI TALWAR MURDERED

मेरी छोटी बहन का फोन आने से पहले मैं सिर्फ विचलित था, लेकिन रात के ११ बजे उससे फोन पर बात करने के बाद से मैं शर्मिंदा हूं। मैं दफ्तर से रोज की तरह घर आ रहा था कि आचानक फोन की घंटी बजी। आम तौर पर गाड़ी चलाते हुए मैं फोन नहीं उठाता, लेकिन रात के समय मेरी बहन ने फोन किया था, जबकि ये समय उसके सो जाने का समय होता है...तो चलती कार में ही मैंने फोन उठा लिया। उसने मुझसे पूछा, "भैया कहां हो?"
मैंने कहा, "बस अभी-अभी दफ्तर से निकला हूं, बताओ क्या हो गया?"
मेरी बहन की कातर आवाज आई, "तुम टीवी पर ये सब क्यों दिखाते हो?"
मैंने पूछा, " क्या हुआ, तुम इस तरह परेशान क्यों हो?"
मेरी बहन ने कहा कि न्यूज चैनल पर लिखा आ रहा है कि बस थोड़ी देर में खुलेगा आरुषि के बेडरूम का राज।
मैंने अपनी बहन को समझाने की कोशिश की कि ये हमारे टीवी चैनल पर नहीं आ रहा, किसी और न्यूज चैनल पर आने वाला होगा। लेकिन उसे ये मैं समझा नहीं सका, क्योंकि उसे लगता है कि देश के सारे टीवी न्यूज चैनल में जो कुछ हो रहा है उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। वो मानती है कि मैं ये सब रोक सकता हूं। मैंने गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी कर दी, और उसे समझाने की कोशिश करने लगा कि तुम सो जाओ। तुम परेशान मत हो। लेकिन वो तो सुबकने लगी। उसने कहा भैया एक १४ साल की लड़की की हत्या हुई है। अपने मां बाप की इकलौती बेटी की हत्या। तुम टीवी वाले उसमें भी मजे ढूंढ रहे हो। कोई चटखारे लेकर बता रहा है कि नौकर के साथ उसके अवैध संबंध थे, इसी लिए उसके मां बाप ने उसे मार दिया तो कोई बता रहा है कि घर में काम करने वाले हर नौकर के साथ वो सोती थी और नौकरों ने आपसी रंजिश में ही आरुषि को मार दिया। किसी ने उसके साथ बलात्कार की खबर चलाई तो किसी ने अवैध संबंधों का पुख्ता प्रमाण टीवी के सामने रख दिया।
मेरी बहन ने मुझसे सीधे-सीधे कहा कि जिस खबर पर तुम्हारी आंखें नम होनी चाहिए थी उस पर तुम भी मजे लूट रहे हो। सोचो, वो १४ साल की एक लड़की थी। किसी की बेटी थी। मां-बाप के कलेजे पर क्या बीत रही होगी? तुम जो दिखा रहे हो वो अगर तुम्हारी नजर में सच भी है तो कम से कम हर सच को इस तरह बयां करना क्या जरुरी है? ऐसी खबरों से तो लोगों का हर रिश्ते से भरोसा ही उठ जाएगा। तुम १४ साल की एक लड़की की मौत के बाद उसके बेडरूम का राज खोलने को बेताब हो.... तुम्हें किसने ये हक दिया कि तुम्ही जांच एजंसी बन जाओ? वो बोलती जा रही थी और मैं सन्न था। मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसने आगे कहा कि वो १४ साल की लड़की किसी की बेटी हो सकती है, मेरी-तुम्हारी या फिर तुम्हारे उन दोस्तों की भी जो उसकी तस्वीर दिखा-दिखा कर मजे लूट रहे हैं। सोचो- खूब सोचो......किसी के साथ ऐसा हो जाए तो हमें क्या करना चाहिए?
मेरी आवाज बंद थी। बहुत मुश्किल से मैं उससे बस इतना कह पाया कि अभी मैं कार चला रहा हूं, घर पहुंच कर मैं तुम्हें फोन करता हूं। इतना कह कर मैंने फोन रख दिया।
मैं घर आ गया। दो दिन बीत चुके हैं और मैं अपनी बहन को अब तक फोन नहीं कर पा रहा हूं।
जानते हैं क्यों?
क्योंकि मैं शर्मिंदा हूं।
मैं सारी रात सो नहीं सका। नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली आरुषि तलवार की हत्या की खबर से मैं विचलित जरुर हुआ था लेकिन अब मैं शर्मिंदगी के एहसास से गुजर रहा था। क्या हम संवेदना शून्य होकर बस हर चीज में मजे ले रहे हैं? आरुषि जैसी घटना हमारे अपनों के घर में घट जाए तो हम क्या करेंगे? उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हम खबरों में वैसे ही पोस्टमार्टम करेंगे जैसा कर रहे हैं? हत्या के बाद उसके प्राइवेट पार्ट से निकलने वाले द्रव को भी रेप....सेक्स...और ऐसे बहुत सारे वीभत्स शब्दों से जोड़ने में हमने देर क्यों नहीं लगाई?
हमने ये जानने की कोशिश भी क्यों नहीं कि मौत से जूझते हुए आदमी के शरीर से ऐसे बहुत से द्रव सिर्फ भय से निकलने लगते हैं...एक ऐसे भय से...जो जिंदगी की सारी जंग को हारने के बाद शरीर को बचा लेने के क्रम में निकल पड़ते हैं।
मेरी मां की मौत कैंसर से हुई थी और जिस दिन उसकी मौत हुई थी...शरीर से आत्मा के निकलने का वो जंग मैंने देखा था। मैंने देखा था कि किस तरह एक पल के लिए ही सही...मौत से पहले उसका पूरा शरीर एकदम भिंच गया था। आंखें कैसे एकदम फैल गई थीं...और....और...
फिर हम ये क्यों नहीं सोच पा रहे कि एक १४ साल की लड़की मरने से पहले जिंदगी से किस कदर जूझी होगी? वो लड़की जिसने मरने से पहले घर वालों के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खाया होगा...वो लड़की जिसने अपने बिस्तर पर जाने से पहले पापा और मम्मी को गुडनाइट कहा होगा...वो लड़की जो अपने दोस्तों के एक एसएमएस पर खिलखिला पड़ती होगी...वो लड़की जो अभी जिंदगी का एक कतरा भी नहीं जी पाई थी...
.....उस लड़की के बेडरूम में और कौन सा राज हो सकता था... उसके बेडरूम में होंगे तो बस थोड़े से वो गुलाबी सपने होंगे जिसे अपनी आंखों में समेटे हुए वो बिस्तर पर लेटी होगी... उसके कमरे में थोड़े से उमड़ते - घुमड़ते बादल होंगे जिनके पार वो छोटी सी चिड़िया बन कर उड़ती होगी..

फिर तो मेरी बहन सुबकते हुए ठीक ही पूछ रही थी....कि १४ साल की बच्ची के बेडरूम का और कौन सा राज तुम खोलने जा रहे हो?

8 comments:

PD said...

अच्छा लगा पढकर कि संवेदनशीलता अभी भी कुछ लोगों में बाकी है.. उम्मीद है की आपको कभी जरूरत परने पर इस तरह के चोंचलों से बचेंगे..

Unknown said...

मैं भी....

क्योंकि जितना दिखाने वालों को होना चाहिये...उतना ही देखने वाले को भी...

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

जितना दुखी थी, उतनी ही खुश भी। अभी भी कुछ लोगों में इतनी संवेदनशीलता बची है

डॉ .अनुराग said...

शुक्रिया सच को कबुलने के लिए .....एक इन्सान तो मिला ...जिसने ये कहा,,.दुःख होता है ....कई बार क्या वाकई टी आर.पी आदमी की सवेंदंशीलता से ऊपर है ?क्या पत्रकार एक बार पढने या एडिट करने से पहले नही देखते क्या पढने जा रहे है.....मोबाइल काल्स की डिटेल से छोटे छोटे बच्चो को फोन करके उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है.....आपकी बहन को मेरा सलाम कहिये ओर अपनी इस शर्मिंदगी को जिंदा रखियेगा......हमारे समाज ओर मीडिया को ऐसे ही लोगो की जरुरत है.....

Udan Tashtari said...

दिल दुखी हो जाता है पर क्या करें-सिवा खुद पर शर्मिंदा होने के. इस घुटन भरे समाज का हिस्सा हम सभी तो हैं. बेजी ठीक कह रही हैं-दिखाने वालोम की तरह ही चाव से उन्हें देखने वाले भी उतना ही जिम्मेदार है. शर्मिंदगी की बात सभी के लिए है.

अति संवेदनशील पोस्ट.

admin said...

सालों कमीनों ऐसा कहने वालों के घर मे क्या माँ बहन नही होती ,अपनी बेटी के साथ होता तब भी क्या ऐसे ही मजे लेते.उससे भी गए गुजरे वो लोग हैं जो इनको देखते हैं और टी आर पी बढ़ाने मे मदद करतें हैं

L.Goswami said...

अत्यन्त शर्मनाक निंदनीय.
कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा ले हिन्दी ब्लोगिंग मे स्पैम की कोई समस्या अभी नही है.

Anonymous said...

aapka lekh par aur socha ki aap tv me kaam kaise kar sakte hain? aap jaise samvedansheel insaan ke liye whan koi jagah hai kya?