Wednesday, 6 December 2006
दो महिलाएं
पिछले दिनों दो महिलाओं से अलग-अलग तारीख में मिलना पड़ा। एक महिला मेरे दफ्तर के स्टूडियो में इंटरव्यू के सिलसिले में आई थी तो दूसरी का इंटरव्यू करने मुझे दिल्ली के ताज महल (मानसिंह रोड) होटल में जाना पड़ा। पहली महिला के इंटरव्यू का जो तय समय था वो उसी समय पर हमारे दफ्तर पहुंच गई तो दूसरी का इंटरव्यू करने मैं समय पर पहुंच गया। दोनों महिलाएं जानी मानी हस्ती हैं। दोनों की अपनी खूबियां हैं और दोनों ही बेहद खूबसूरत भी। एक की लंबाई दूसरे के मुकाबले कम थी तो रंग दूसरे से साफ था। दोनों की आंखों में चमक थी। दोनों के चेहरे पर आत्मविश्वास पूरा था। दोनों ही महिलाओं की मैंने कई फिल्में देख रखी थीं इसलिए दोनों से मुलाकात और बात में ज्यादा औपचारिकता नहीं रही। इनमें से पहली महिला का नाम उर्मिला मातोंडकर है जिसकी पहली फिल्म मैने देखी थी-मासूम। तब वो एक छोटी सी और प्यारी सी बच्ची थी। लेकिन मेरी मुलाकात उससे तब हुई जब वो भूत फिल्म में काम कर चुकी थी और इसके बाद भी कुछ फिल्में आ चुकी थीं। दूसरी महिला का नाम है मल्लिका शेरावत। मल्लिका की फिल्म मर्डर मैने कुछ साल पहले देखी थी, शायद अपने अमेरिका प्रवास में। तब अमेरिका में मेरा पूरा परिवार हिंदी की हर फिल्म वीडियो पर देखता था और इंडियन स्टोर में आसानी से पाइरेटेड वीडियो की कापी मिल जाती थी। उर्मिला की फिल्म भूत कहानी के हिसाब से चाहे जितनी लचर रही हो उनकी एक्टिंग लाजवाब थी। कहने की जरुरत नहीं कि इसके पहले प्यार तूने क्या किया में भी उर्मिला ने शानदार एक्टिंग की थी। उसी उर्मिला को सामने देख कर मुझे बहुत खुशी हुई। दूसरी तरफ पिछले हफ्ते जब मल्लिका से मिला तो कुछ ऐसा लगा कि 'गर्ल नेक्स्ट डोर' से मेरी मुलाकात हो रही है। उर्मिला से मुलाकात में लगा कि वो अब मासूम की ना तो बच्ची है और ना ही भूत से डरने वाली एक महिला। उर्मिला काफी संभली सी लगी और बातचीत में पूरी गंभीर बनी रही। इंटरव्यू के दौरान थोड़ी हंसी जरुर दिखी लेकिन चमकती आंखों में कुछ खामोशी सी भी दिखी। क्यों? मैं सोचता रहा। मल्लिका कुछ देर से इंटरव्यू के लिए आई थी। आने के बाद लगा कि थोड़ी गंभीरता उसने ओढ़ रखी है, लेकिन पांच मिनट के बाद ही मल्लिका पूरी तरह मल्लिका दिखने लगी। थोड़ी शोख, थोड़ी स्टाइलिश और अपने चेहरे और ड्रेस को लेकर पूरी तरह चौकस। उर्मिला का इंटरव्यू जब हो रहा था तब एक बार भी उन्होंने अपने मेकअप मैन को बीच में आने की अनुमति नहीं दी। लेकिन मल्लिका ने आधे घंटे के इंटरव्यू में हर चौथे मिनट मेकअप मैन को याद किया, आईना में चेहरा देखा। उर्मिला के चेहरे पर कहीं अकेलेपन की टीस थी (कह नहीं सकता कि ये मेरे देखने का नजरिया था या सच्चाई) तो मल्लिका के चेहरे पर सबके साथ होने की दमक। मैंने अपने मोबाइल फोन से दोनों की तस्वीर उनसे पूछ कर उतारी। बाद में तस्वीर भी मैंने कई बार देखी और सोचता रहा कि क्यों मल्लिका ऐसी लग रही थी कि वो बालीवुड के साथ कदम ताल कर रही है और उर्मिला एकदम अकेली है, इसका जवाब मुझे नहीं मिला। उर्मिला पहले से फिल्मों में हैं और उसे उन तमाम लोगों का साथ मिला है जो उसे बालीवुड में किसी मुकाम पर पहुंचा सकते थे। मल्लिका के साथ ऐसा नहीं रहा। मल्लिका ने खुद ही इंटरव्यू में माना कि ना तो उनके नाम के साथ मशहूर सरनेम जुड़ा था और ना ही फिल्मों में कोई उसका आका रहा। और तो और उसे अपना फिल्मी सफर शुरु करने से पहले नाम तक बदलना पड़ा। कोई बहुत ज्यादा फिल्में भी उसके खाते में नहीं दिखीं। मर्डर के अलावा जिस फिल्म की थोड़ी चर्चा की जा सकती है वो है प्यार के साइड इफेक्ट्स। फिर भी मल्लिका चंचल और खुशमिजाज दिखी और उर्मिला उदास। उर्मिला की उदासी मुझे इसलिए ज्यादा खली क्योंकि वो रंगीला की एक ऐसी लड़की थी जिसके अपने सपने थे और उन सपनों को साकार करने के लिए उसने एक ऐसा रास्ता चुना जिस पर चल कर वहां तक पहुंचना इतना आसान हकीकत में नहीं होता जितना फिल्म में था। तो क्या हकीकत में उर्मिला के साथ ऐसा ही हुआ? मर्डर से फिल्मों में छा जाने वाली मल्लिका का जीवन कैसा है नहीं पता, लेकिन जितना जाना उसके मुताबिक उसके मम्मी-पापा उसके फिल्मी करियर से खुश नहीं थे। फिर भी मल्लिका खुश दिखी। लगा जिंदगी में कई रंग हैं। दोनों लड़कियों से मिलने के बाद कई सवाल दिल में रह गए। दोनों आज के दौर की महिलाएं हैं। दोनों सफल हैं। दोनों एक ही विधा में हैं। फिर ये फर्क क्यों? दोनों ने मेरे दिल को छुआ। दोनों की अपने आप में अलग-अलग कहानी हैं। तो क्या दूसरों की कहानी को अभिनय में ढालने वाली इन महिलाओं की अपनी कहानी अनकही और अनसुनी है? क्या दोनों की कामयाबी के राह अलग-अलग हैं? ये सवाल दिल में लेकर मैं नींद से कई बार उठा हूं और सोचता हूं कि ये सफलता का दंश है या फिर दंभ। एक के चेहरे पर मुझे दंश और दूसरे के चेहरे पर दंभ क्यों दिखा?
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3 comments:
शायद भीतर की सोच और संवेदना हमारे चेहरे पर हमेशा रहती है। चेहरा चाहे उर्मिला का हो, मल्लिका का, हमारा या आपका।
उर्मिला एक अच्छी अभिनेत्री है इसमे कोई शक नहीं, यही बात मल्लिका के लिए नहीं कह सकता. मात्र प्रतिभा के बल पर आप फिल्मे नहीं बटोर सकते यह बात उर्मिला को देख कर साफ हो जाते है. लगता है उर्मिला को भी यही दंश है.
सिन्हा साहब,
इन महिलाओं की आगामी फ़िल्म मे नायक की भूमिका के लिये यदि किसी नये चेहरे की तलाश हो तो मुझे अवश्य याद करियेगा।
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