Tuesday, 5 December 2006
आप सभी की प्रतिक्रियाएं
आप लोगों की प्रतिक्रियाएं मिलीं। कई लोगों ने मुझे सलाह दी है कि मैं किसी क्राइम रिपोर्टर से संपर्क करूं। सवाल ये है कि क्या बिना सिफारिश के कोई काम नहीं हो सकता है? वैसे आप लोगों को बता दूं कि मैंने अपने कई रिपोर्टरों के अलावा दूसरे चैनल के साथी रिपोर्टरों से भी मदद मांगी। सवाल मेरे पैसे के नुकसान का तो था ही, मैं चाहता था कि एक टैक्सी चलाने वाले को सबक भी मिले ताकि इस देश में कुछ भी चलेगा की सोच ज्यादा न फले फूले। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। मेरे सभी रिपोर्टर मुझसे ये कहते हुए गए कि वो एसएचओ को सबक सिखा देंगे। और अंत में सभी यही कहते नजर आए कि वो कुछ नहीं कर पा रहे हैं। एक रिपोर्टर से तो एसएचओ(इंसपेक्टर) ने ये तक कहा कि वो टैक्सी वाला उसके काफी काम आता है और वो पूरी तरह उससे उपकृत हैं। ऐसे में वो कुछ नहीं कर सकते। हो सकता है कि एक एसएचओ एक टैक्सी वाले से इतना उपकृत हो कि वो उसके खिलाफ कार्रवाई ना कर पाए। मुझे ये भी अच्छा लगा कि वो किसी रिश्ते (टैक्सी वाला) के प्रति तो ईमानदार हैं लेकिन ये ईमानदारी उसके अपने काम के लिए भी होनी चाहिए थी। ऐसा ना होने पर उस पुलिस वाले को ये नहीं भूलना चाहिए था कि टैक्सी वाले ने हादसे के बाद जब मुझसे ये कहा था कि मैं चाहूं तो पुलिस बुला लूं- ये कहते हुए उसकी आंखों में दंभ और पुलिस वालों के उसके जेब में होने का गुरुर भी मैने देखा था। हो सकता है आपको ये लगे कि मैं एक छोटी सी शिकायत को इतना तूल क्यों दे रहा हूं। लेकिन मैं मानता हूं कि ये छोटी सी बात सभी को कहीं न कहीं आहत करती होगी। हर आदमी को ये बात तकलीफ देनी ही चाहिए कि कहीं कोई हमारी आपकी जिंदगी से यूं ही सुकुन ना चुरा ले जाए।
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3 comments:
मैं आजतक न्यूज चैनल में बतौर सीनियर प्रोड्यूसर काम करता हूं।
--हम तो आज तक अखबार और टी वी वालों को ही सबसे पावरफुल बंदे समझते थे...आप तो हमारा चश्मा उतरवाये दे रहे हैं. गजब बात है!!! :)
संजय जी, वाक्या तकलीफदेह तो जरुर है पर आश्चर्यजनक नहीं। फिर भी मेरा विश्चास है की देर सबेर राह जरूर निकलेगी।
राजेश
संजय जी,
बिल्कुल सच बात है - "..मुझे ये भी अच्छा लगा कि वो किसी रिश्ते (टैक्सी वाला) के प्रति तो ईमानदार हैं लेकिन ये ईमानदारी उसके अपने काम के लिए भी होनी चाहिए थी। .."
आज अधिकतर जगह (कम से कम भारत में) तो हम यही देखते हैं कि जो व्यक्ति जिस काम की तनख्वाह लेता है वो उस काम को इमानदारी से नहीं निभाता.
भारत में "खुश" रहने के लिये या तो रसूख/पैसेवाले बनों, या फ़िर नंगे ही रहो. क्योंकि नंगो को कुछ खोने का डर तो नहीं रहता.
जिस तरह की स्थिति से आज आप गुजर रहे हो कि चाह कर भी कुछ कर नहीं सकते, वैसी ही स्थितियों से कई बार गुजरा हूँ, माना नुकसान ज्यादा बड़ा नहीं हुआ, मगर मन तो दुखता ही है अगर अपनी मेहनत का एक भी रुपया किसी ने मारा तो.
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