Wednesday, 6 December 2006

प्रसंगवश

मेरी एक दोस्त ने एक शापिंग मॉल के बाहर अपनी कार पार्क की। कार पार्क करते ही पार्किंग वाला वहां आया। उसने पैसे मांगे तो मेरी दोस्त ने कहा कि वापसी पर पैसे दूंगी। पार्किंग वाले ने कहा कि नहीं अभी पैसे देने होंगे। इसपर मेरी दोस्त ने कहा कि पैसे ले कर आपलोग यहां से खिसक जाते हैं, और वापसी पर कोई कार की रखवाली करता नहीं मिलता। लेकिन पार्किंग वाला नहीं माना। मेरी दोस्त ने जिद में आकर कहा कि कार तो यहीं रहेगी जो चाहे कर लो। ये कह कर वो चली गई। करीब घंटे भर बाद जब वो वहां आई तो उसने देखा कि चारों पहियों की हवा निकली हुई है और दरवाजे के लॉक टूटे हुए हैं। उसने घबरा कर अपने पति को फोन किया। पति एक बड़े टीवी पत्रकार हैं और उन्होंने अपने संपर्क का इस्तेमाल करते हुए क्राइम रिपोर्टर से वहां के थानेदार को फोन करवा दिया। थानेदार आया और उसने शिकायत लिखी। शिकायत पर अमल करते हुए थानेदार ने पार्किंग ठेकेदार को थाने में बुलाया। ठेकेदार थाने में आते ही मेरी दोस्त के पैरों पर गिर पड़ा। उसने माफी मांगी और कहा कि वो उसकी बहन की तरह है, कृपया शिकायत वापस ले ले। इस पर मेरी दोस्त पिघल गई और थानेदार से उसने शिकायत वापस ले ली। बात खत्म हो गई। पार्किंग ठेकेदार आराम से चला गया। उसने मेरी दोस्त की कार का लॉक ठीक करवा दिया। चारों पहिए में हवा भरवा दी।

हमने थानेदार की तारीफ की, कि उसने अपना काम दुरुस्त किया। पार्किंग ठेकेदार के होश ठिकाने लगा दिए। मेरी दोस्त ने कहा कि ज्यादा कार्रवाई की जरुरत नहीं थी। जितना हुआ ठीक रहा। ऐसा होने से पार्किंग वाले ठीक रहेंगे। उनकी मनमानी और दादागीरी नहीं चलेगी।

पिछले हफ्ते गाजियाबाद के उस थानेदार का फोन मेरी दोस्त के पास आया। उसने कहा कि आपकी तो बड़ी सिफारिश है। मुझे बचा लीजिए। मेरी दोस्त ने पूछा कि ऐसा क्या हुआ। उसने बताया कि पार्किंग ठेकेदार उस दिन तो चला गया, लेकिन उसने मेरठ में डीआईजी से मेरी शिकायत की। कहा कि एक महिला के कहने पर थानेदार ने उसे थाने में बुलवाया और पांव पर गिरवाया। डीआईजी साहब बहुत नाराज हुए। उन्होंने थानेदार का ट्रांसफर मेरठ करवा दिया।

कहने की जरुरत नहीं कि जिस पार्किंग ठेकेदार को हम मामूली आदमी मान रहे थे, वो थानेदार पर भी कैसे भारी था। कितना पैसा पार्किंग के ठेके में लगा है और कितनी धांधली चल रही है ये भी बताने की जरुरत है क्या?

6 comments:

Pratik Pandey said...

आपका ब्लॉग पढ़ कर लगता है कि पार्किंग ठेकेदार और टेक्सी-मालिक वगैरह बहुत रसूख वाले होते हैं। लगता है इन लोगों से सम्हल के रहना पड़ेगा :-)

रवि रतलामी said...

हा हा हा...

क्या मज़ेदार वाक़या है!

Rajesh Kumar said...

हम तो आज तक आजतक के पत्रकारों को तोप ही समझते आए हैं। अगर वो इतने परेशान चल रहे हैं तो..........:)
संजयजी, शम्स ताहिर खान को आवाज लगाई जाए कि कुछ रिपोर्टिंग ट्रॉफिक पर भी हो जाए, हालात काफी खराब चल रहे हैं।

संजय बेंगाणी said...

तौबा, क्या दादागीरी है.
ऐसी ऐसी खबरे सुना कर आपने तो हिला दिया.
पता नहीं किसके तार किससे जुड़े हैं.

Pramendra Pratap Singh said...

वास्‍तव मे यह प्रंसग मजेदार और आज की व्‍यवस्‍था पर प्रश्‍न उठाता हुआ है। जिसका पहुच तिजनी उपर वह उतना बड़ा थानेदार

अनुराग श्रीवास्तव said...

बेचारा दरोगा, जाने अब क्या करे ! ?