ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है और आप सिवाय मन मसोस कर चुप रह जाने के कुछ भी नहीं कर सकते। 14 नवंबर को दोपहर में मैं अपने एक साथी के साथ कार से दफ्तर जा रहा था। दिल्ली के आईटीओ पुल पर पीछे से एक इंडिका कार ने मेरी कार को जोरदार टक्कर मारी। मेरी होंडा सिटी कार काफी टूट फूट गई। मैने कार के ड्राइवर से अपनी कार के नुकसान की भरपाई करने को कहा। उसने कहा कि वो ड्राइवर है और उसने कार मालिक को फोन किया। थोड़ी देर में कार का मालिक वहां आया। उसने बताया कि उसका अपना टैक्सी स्टैंड है और जिस निजी कार से मेरी कार की टक्कर हुई थी वो भी टैक्सी में चल रही थी। टैक्सी मालिक ने कहा कि मैं चाहूं तो पुलिस को बुला लूं, लेकिन वो मेरे नुकसान की भरपाई नहीं करेगा। उसने ये भी कहा कि आपके कार के नुकसान की भरपाई में ज्यादा पैसे देने होंगे- पुलिस को पांच सौ देकर निपट जाउंगा। मैने उससे कहा कि अगर आपकी कार का इंश्योरेंस है तो वही दे दें, थर्ड पार्टी इंश्योरेंस में वो कवर हो जाएगा। लेकिन उसने बताया कि उसकी कार का कोई इंश्योरेंस भी नहीं है। मैने पुलिस को फोन किया। घंटे भर बाद एक किलोमीटर दूर शकरपुर थाना से हेड कांस्टेबल विजयेंद्र सिंह वहां पहुंचा। उसन पूरे हालात का जायजा लिया और मुझसे उसने कहा कि आप एक शिकायत लिखवा कर चले जाएं। मैने शिकायत लिखवा दी। अगले दिन जब मै शिकायत के बारे में जानने थाने गया तो पता चला कि मोटर व्हैकिल एक्ट 184 के तहत चालान काट कर उस कार को छोड़ दिया गया है। मैने हेड कांस्टेबल से पूछताछ की तो पता चला कि वो टैक्सी स्टैंड वही थाने के पास है और जिस कार से मेरी कार की टक्कर हुई थी वो थाने वालों को ही उपकृत करती थी। ऐसे में टैक्सी मालिक का ये दावा कि आप पुलिस बुला लें...मुझे जायज ही लगा। मैने एसएचओ से संपर्क किया और जानना चाहा कि एक निजी कार टैक्सी में चल रही है, और उसका इंश्योरेंस नहीं है आपने इसका मामला भी क्यों नहीं बनाया। इसपर एसएचओ साहब ने मुझसे कहा कि निजी कार टैक्सी में चल रही है आप कैसे साबित करेंगे। रही बात कार का इंश्योरेंस नहीं होने की तो आप इसके लिए कोर्ट जा सकते हैं- मुझे जितनी कार्रवाई करनी थी कर ली।
मैने पूरा वाकया दिल्ली के पुलिस कमिश्नर श्री केके पॉल को मेल पर लिखा। मेरी शिकायत विजिलेंस विभाग के एक सब इंस्पेक्टर को भेज दी गई। सब इंस्पेकटर ने मुझे बुलाया। मेरा बयान लिया। लेकिन मामला एसएचओ के खिलाफ था तो अब सवाल सामने आया कि एक सब इंस्पेक्टर अपने इंस्पेक्टर की जांच क्या करे।
हम और आप सीट बेल्ट बांधे बिना गाड़ी स्टार्ट कर लें तो गुनाह है। हम और आप एक लाल बत्ती पार कर जाएं तो गुनाह है। हम और आप मोबाइल हाथ में ले कर कार की स्टीयरिंग पर नजर आ जाएं तो महा गुनाह है।
लेकिन सरेआम हमको और आपको कोई मार जाए...हजारों रुपए का नुकसान कर जाए..तो भी उसका कोई कुछ इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि वो किसी पुलिस वाले को उपकृत करता है। उसके पास लाइसेंस ना हो, इंश्योरेंस ना हो कोई बात नहीं। और जब मैने ज्यादा जोर देकर एसएचओ से कहा कि मेरा काफी नुकसान हो गया है (करीब 30 हजार रुपए) तो उन्होंने कहा क्या मैं कार वाले को फांसी दे दूं।
Tuesday, 5 December 2006
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6 comments:
मान्यवर ऐसा हम सब के साथ कभी न कभी होता रहा है, बहुत बार हेल्मेट न पहनने पर जो पुलिसवाले चलान काटते हैं, उन्हे ही बिना हेल्मेट के वाहन चलाते देखा है.
आपके साथ आगे क्या हुआ लिखते रहे. प्रेरणा मिलेगी.
संजय भाई,
आप किसी न्युज चैनल वाले से बात करके देंखे, मिडीया के हस्तक्षेप से कुछ हो सकता है !
गाड़ी को हुए नुकसान के बहाने आपने हिन्दी में चिट्ठाकारी शुरू कर दी, यह अच्छी बात है। आप किसी भी चैनल के क्राइम रिपोर्टर से संपर्क करके अपने मामले को कवर करा सकते हैं। शायद कुछ कार्रवाई हो जाए। पुलिस की कार्यशैली तो ऐसी ही है, उसमें सुधार ला पाना इतना आसान नहीं है।
संजय जी, हिन्दुस्तान में हर अपराध के तार कहीं-न-कहीं पुलिस से ज़रूर जुड़े होते हैं। यहाँ पुलिस ही आपराधिक तत्वों को छत्रछाया प्रदान करती है। यही इस देश की विडम्बना है।
Sanjay Jee, please keep on pursuing this matter as much as you can. We definitely have moral support with you. I bet you might find some or many difficulties in solving it, but please do that for the sake of improving the system. Please see if RTI act can help you in this system as well.
भाई साहब
अगर आप जैसे प्रतिष्ठित पत्रकार के साथ ऐसा हो सकता है तो सामान्य आदमी की तो क्या बिसात, वैसे आपको इस घटना को अपने चैनल पर बताना चाहिये था ताकि कुछ कार्यवाही होती।
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